#loneliness and lack of #social #circle is prevalent not just among elders, but also among youngsters. In light of the #chennaifloods last year, I have tried to write something on the importance of knowing our person next door.
#technology is good, but it is the another #human which can console, understand, and help in the time of need.
Though, just part of my imagination, I did try to reflect my thoughts on the changing #social trends in #metros
It has been recited at an event organized by Anjuman (Hindi Urdu Poetry Club), Bengaluru. Click here to know more about the event.
इस कविता की पहली २ लाइन्स एवं शीर्षक सुगुना देवन जी की tweet से लिया गया हैं| चेन्नई मैं पिछले वर्ष आई बाड़ मैं एक बहुत अच्छी बात मेरे एक मित्र ने लिखी थी की हममें अपने अड़ोसियों और पड़ोसियों को जानना चाहएं, क्यूंकि विपाती के वक़्त वाही काम आतें हैं| तो इस्सी पर मैंने कुछ लिखने की कोशिश की हैं | हिंदी की टाइपिंग करते समय वर्तनी मैं हुए गलती के लिए खेद हैं|
इस कविता को अंजुमन की संध्या मैं २२ माय २०१६ को सुनाया गया था| जयादा जानकारी के लिए इस लिंक पर जायें > https://ankitkhandelwal.in/2016/05/24/anjuman-hindi-urdu-poetry-club-bangalore-22-may-2016/
शीर्षक: शक्क्कर ख़तम हो गयी हैं घर मैं
शक्कर ख़तम हो गयी घर मैं,
बहाना मिल गया किसी नजदीक के कुचें से बात करने का
पड़ोस की आंटी के घर इस्सी बहाने
आना जाना शुरू हो गया|
हाल चाल जानने से शुरू हुई बातें
और इस्सी बहाने हुई कई मुलाकाते
जिंदगी की इस भाग्दोद्द के बिच
टहरने का एक ठिकाना मिल गया
उनकी बालकनी मैं आती हुए धुप की छाव मैं
सड़क का वह छुपा हुआ किनारा दिख गया
रसोई से आती मसालों की खुशबू के बहाने
कभी कभी देसी खाने का बहाना मिल गया
उनकी बैठक के उस मंदिर से आती भजन की आवाज ने
सोये हए आध्यात्मिकता के जीव को पुनः जीवित कर दिया
अपनी माया एवं मोह से भरी सोच के बिच
श्रदा एवं भक्ति का नजारा मिल गया
शक्कर ख़तम हो गयी घर मैं,
बहाना मिल गया किसी नजदीक के कुचें से बात करने का
पड़ोस की आंटी के घर इस्सी बहाने
आना जाना शुरू हो गया|
चाय की चुस्की पर शुरू हुए उनकी कहानी
आँखें नाम हुए जब जानी उनकी यादें पुराणी
पिता की गोदी या विदेश यात्रा का अनुभव, याद था उन्हें मुह जुबानी
कभी बचपन तो कभी जवानी, सुनी उनकी सारी कारस्तानी
बचपन मैं थी अपने पिता को वो दुलारी
तो उम्र बदने पर निभाई अनेको वैवाहिक एवं पारिवारिक जिम्मेदारी
आज भी याद हैं उन्हें अपने बच्चों की वो किलकारी
पर सम्जः ना पायी वो, आज की पीड़ी की एक दुस्सरे से ना जुड़ने की लाचारी
बेटी एक विदेश मैं तो बेटा हैं अपने पास
सब कुछ ठीक हैं, फिर भी नहीं आती शेहर की आबों हवा उन्हें रास
जवानी मैं कभी करती थी नोजवानो के दिलो पर राज
आजकल कोई नहीं हैं अपना पूछने वाला आस पास
शक्कर ख़तम हो गयी घर मैं,
बहाना मिल गया किसी नजदीक के कुचें से बात करने का
पड़ोस की आंटी के घर इस्सी बहाने
आना जाना शुरू हो गया|
उनके आँगन मैं रखें शीशे की तरह
जिंदगी के कुछ अनचुएं पहलुओं से हुए हम दो चार
कभी रंगोली तो कभी चित्रहार
उनसे मिलना हुआ हर रविवार
कभी हस्सी मजाक तो कभी कॉलेज की रंगीन बयार
लगा बैठा हैं, कोई बगल मैं अपना यार
सुने उनकी माखन चोरी के किस्से हजार
जिंदगी कितनी खूबसूरत हैं, सम्जः आया कई बार
कहा गए वो एक रुपयें के गुडिया के वो बाल
तकनीक मैं कही गूम हो गए है, पूछने वाले हैं जो हाल चाल
और अकेलपन ने दिए हैं, सोचने को कई सवाल
जाना यह सब कुछ देख करके उनका हाल
शक्कर ख़तम हो गयी घर मैं,
बहाना मिल गया किसी नजदीक के कुचें से बात करने का
पड़ोस की आंटी के घर इस्सी बहाने
आना जाना शुरू हो गया|
उनकी इच्छाएं और सपनो के बहाने
जाने बचपन से शादी और उसके बाद के अनेको सफ़र सुहाने
कच्चे धागे ही सही, रिश्तो की अहमियत आज सम्जः आई
जाने अनजाने ही सही, उनसे एक सामजिक रिश्ता कायम हो गया
शक्कर ख़तम हो गयी घर मैं,
बहाना मिल गया किसी नजदीक के कुचें से बात करने का
पड़ोस की आंटी के घर इस्सी बहाने
आना जाना शुरू हो गया|
Poem inspiration:
One of the tweets from the twitter page of Miss Suguna Dewan (https://twitter.com/SugunaDew)
Disclaimer:
– This is purely a work of fiction and only meant to entertain other people. It may look closer to reality to many but it does not resemble any real incident. Please read the poem in the same context.